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राजा जौनपुर आज भी करते है अपनी प्रजा की भावनाओ का सम्मान - Shri Batuk Bhairav

राजा जौनपुर आज भी करते है अपनी प्रजा की भावनाओ का सम्मान

October 25th, 2015

विजय दशमी का पावन पर्व हम सभी बड़े ही उल्लास के साथ मानते है पर क्या हमें ये पता है की इस दिन राजा का दर्शन साक्षात् भगवान के दर्शन के समान माना जाता है | हम में से ज्यादा तर लोग यही कहेंगे की इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं थी पर उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में यह परंपरा आज भी कायम है और राजा जौनपुर इस परम्परा को कायम रखने में अपना पूर्ण सहयोग भी प्रदान करते है | साल २०१५ के इस विजय दशमी के पावन पर्व पर राजा जौनपुर श्री अवनींद्र दत्त दुबे की हवेली में एक बार फिर राजाशाही परम्परा से इस पर्व को बड़ी ही धूम-धाम से मनाया गया। राजा अवनींद्र दत्त दुबे जी ने अपने पुश्तैनी सिहासन पर आसिन होकर शस्त्र पूजन किया और इस पवन मौके पर उनके दरबारियों ने उनको लागान स्वरुप भेट भी दी | यह नजारा देखने योग्य था क्यूंकि इसमे राजतंत्र की परम्परा की बहुत ही सुन्दर झलक दिखाई पड़ी।

जौनपुर राज की स्थापना सन् 1776 में हुई थी और इसके सबसे पहले राजा महाराज शिवलाल दत्त दुबे जी हुए थे उस समय इस राज्य की सीमा मिर्जापुर से लेकर गोरखपुर तक हुआ करती थी। लेकिन अंग्रेजी हुकमत ने इस राज्य की सीमा को केवल जौनपुर तक सीमित कर दिया। स्थापना काल से ही हर विजय दशमी के पावन पर्व पर शस्त्र पूजन होता चला आ रहा है और दरबारी लगान स्वरुप भेट महाराज के चरणों में अर्पित करते चले आ रहे है। शस्त्र पूजन के बाद राजा अवनींद्र दत्त दुबे जी की सवारी रावण का पुतला दहन करने के लिए हाथी घोड़ा और वाहनों के हुजूम के साथ राजासाहब के पोखरे पर पहुंची, जहाँ राजा अवनींद्र दत्त दुबे जी ने पहले सम्मी पूजन और उसके बाद रावण दहन किया।

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